अजमेर, रसूलपुरा गांव के 41 वर्षीय रजा मोहम्मद, कोना के पहले तक गांव में अपने खुद के स्कूल में पढ़ाया करते थे। लेकिन कोना समय में, जब स्कूल बंद हो गए और उनकी आय भी ख़त्म हो गई, तब वह रोजगार के अवसर की तलाश में थे। उनके पास अपने दो बीघा खेत भी हैं, जिसमें वह कुछ मौसमी फसलें उगाते थे, लेकिन ज्यादा मुनाफा नहीं हो पा रहा था। इसी दौरान, उन्हें मोती की खेती के बारे में पता चला।
बस फिर क्या था, थोड़ी सी जानकारी के बाद ही रजा मोहम्मद जुट गए इसकी ट्रेनिंग लेने में। इस बारे में रजा बताते है कि उन्होंने डेढ़ साल पहले ही मोती की खेती शुरू की है। शुरुआत में उन्हें नहीं पता था कि वो मोती कैसे उगाएंगे। इसी दौरान उन्हें राजस्थान के किशनगढ़ के नरेंद्र गरवा के बारे में पता चला, जिन्होंने काम बंद होने के बाद मोती की खेती शुरू की थी।
थोड़ी सी जानकारी के बाद ही रजा मोहम्मद को यह विश्वास हो गया कि वो इस काम को आसानी से कर सकते हैं. आगे उन्होंने इसकी ट्रेनिंग ली और अपने घर में ही मोती उगाने शुरू कर दिए. रजा के इस फैसले ने उनकी जिंदगी को पूरी तरह से बदलकर रख दिया है. मौजूदा समय में वो 2 लाख रुपए तक की कमाई कर रहे हैं और दूसरों के लिए एक प्रेरणा बन चुके हैं. इंडिया टाइम्स हिन्दी ने रजा के साथ खास बातचीत की जिसमें उन्होंने अपनी जर्नी शेयर की:
जब रजा मोहम्मद ने मोती की खेती से जुड़ने का फैसला किया था, तब देश में कोना के हालात थे। इसलिए वह सिर्फ एक दिन ही ट्रेनिंग ले पाए थे। एक दिन की ट्रेनिंग के बाद, उन्होंने अपने खेत में ही 10/25 की जगह में एक छोटा तालाब बनवाया और इस पर तिरपाल लगाकर मोती उगाना शुरू कर दिया।
उन्होंने ज़रूरी सामान जैसे दवाएं, अमोनिया मीटर, पीएच मीटर, थर्मामीटर, एंटीबायोटिक्स, माउथ ओपनर, पर्ल न्यूक्लियस जैसे उपकरण खरीदें। इसके बाद, उन्होंने सीप के लिए भोजन (गोबर, यूरिया और सुपरफॉस्फेट से शैवाल) तैयार किया।
उन्होंने अपने तालाब में डिज़ाइनर मोती के न्यूक्लियस को तक़रीबन 1000 सीपों में लगाए थे। हर एक सीप में न्यूक्लियस डालकर छोड़ देना होता है और उसके भोजन और विकास का ध्यान रखना होता है। सब अच्छा रहा तो एक सीप से दो मोती मिलते ही हैं।
वह कहते हैं, “मोती की फसल आने में 18 महीने का समय लगता है। मैंने इस पूरी प्रक्रिया में करीबन 60 से 70 हजार का कुल खर्च किया था, जबकि मुझे कुछ दिनों में ही करीबन ढाई लाख का मुनाफा होने की उम्मीद है।”